1-
जी रहे थे हम एक मोती की ख़्वाहिश लिए
तू मिला कि जैसे समन्दर मिल गया ।
वक़्त बेवक्त एक साथी की कमी खलती थी
तू मिला तो मुझे हमसफ़र मिल गया ।
इंतज़ार है कि कभी हम-तुम भी मिलेंगे
कह सकूँगा कि शब को ‘सहर’ मिल गया ।
2-
जो अधूरी छोड़ दी थी लिखकर कहीं
वो ग़ज़ल अब शायद मुकम्मल हो जाये।
एक अरसे से जो क़ैद थी दिल में
वो धड़कन अब शायद खो जाये।
कोई और नशा महसूस नहीं होता
जब नसों में इश्क़ लहू हो जाये।
ले रहा है बस उसका नाम बार-बार
ये वो दिल है जिसे दिलबर की आरज़ू हो जाये।
– सहर
Advertisements
बहुत खूब ‘सहर’ जी
LikeLiked by 1 person
Aap kaise appreciate karne wale na ho to hum ek sher bhi nahi likh sakte janaab
LikeLiked by 1 person