शायरी की गहराइयों में हौसला है और उम्मीद भी, शायद आप भी इन लफ़्ज़ों को पढ़कर ये समझ पाएं :
“इतना भी ना-उम्मीद दिल-ए-कम-नज़र न हो,
मुमकिन नहीं कि शाम-ए-अलम की सहर न हो |”
– नरेश कुमार शाद |
Urdu Words:
ना-उम्मीद : Hopeless, dejected
दिल-ए-कम-नज़र- narrow sighted heart
शाम-ए-अलम- evening of sorrow
सहर – dawn,morning
Advertisements
Leave a Reply