‘वो आंखें जिनमें ख्वाब हैं,
वो दिल हैं जिनमें धड़कनें,
वो बाजू जिनमें है सकत,
रहूँगा उनके दरमियाँ,
कि जब मैं बीत जाऊँगा..’
– कैफ़ी आज़मी
~अक्षरों के समुद्र में, शब्दों के मोती और भावनाओं की माला~
‘वो आंखें जिनमें ख्वाब हैं,
वो दिल हैं जिनमें धड़कनें,
वो बाजू जिनमें है सकत,
रहूँगा उनके दरमियाँ,
कि जब मैं बीत जाऊँगा..’
– कैफ़ी आज़मी
”कुछ लोग न जाने कहाँ खो गए इस भीड़ में
कोई आहट ना, न दिखाई दिये
शोरगुल एसा था हर जगह,
ना हमें सुन सके ना सुनाई दिये
पहले जिन्दगी फिर यादों से कुछ यूँ हुये रुख़सत
कि फिर सपनों में भी लौटकर ना दिखाई दिये।”
– सहर
क्या करूं शायरी से जो मुझे प्यार हो गया ?
खुद से ज्यादा लफ्जों पर ऐतबार हो गया,
क्या करूं कि अब नींद नहीं आती ?
खामोश रातों में गिरफ्तार हो गया |
क्या करूं कि अब गुम हूं कहीं और ही ?
जानी पहचानी राहों में फिर आज खो गया,
क्या करूं जो आज फिर बैठा हूं कलम लेकर ?
कहीं किसी ग़ज़ल को मेरा इंतजार रह गया |
क्या करूं कि अब रफ्तार-फरोश है खयालात ?
जिंदगी को लेकर आज फिर से खबरदार हो गया,
क्या करूं उड़ रहा हूं बिन, हवा बिन पंख के ?
आज मौसम भी बहारें गुलजार हो गया |
क्या करूं कि तस्वीर तुम्हारी भूल जाता हूं हमेशा ?
रोज याद कर करके चेहरा आपका हमें याद हो गया,
क्या करूं कि आपके बिना बड़े बेचैन हैं ?
दिल मेरा भी इस गम में आपका मददगार हो गया |
” कुछ लोग न जाने कहाँ खो गए इस भीड़ में
कोई आहट ना , न दिखाई दिये
शोरगुल एसा था हर जगह,
ना हमें सुन सके ना सुनाई दिये
पहले जिन्दगी फिर यादों से कुछ यूँ हुये रुख़सत
कि फिर सपनों में भी ना दिखाई दिये। ”
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