फैसला हो ही नहीं पाया
बहुत बातों के बाद,
कौन खुलता है यहाँ
कितनी मुलाकातों के बाद..
आंसुओं के सामने
पत्थर-दिली की क्या बिसात
अच्छे अच्छे घर दरक जाते हैं
बरसातों के बाद
— वसीम बरेलवी साहब
~अक्षरों के समुद्र में, शब्दों के मोती और भावनाओं की माला~
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